तेरे उतारे हुए दिन
टंगे है लोनं में अब तक
न वोह पुराने हुए है
न उनका रंग उतारा
कहीं से कोई भी सिवान अभी नहीं उधडी
एलैची के बहुत पास रखे पत्थर पर
ज़रा सी जल्दी सरकाया करती है छाओं
ज़रा सा और घना हो गया है वोह पौधा
मैं थोडा थोडा वोह गमला हटाता रहता हूँ
फकीर अब भी वहीँ मेरी कोफ़ी देता है
गिल्हेरियों को बुलाकर खिलाता हूँ बिस्कुट
गिल्हेरियाँ मुझे शक की नज़र से देखती है
वोह तेरे हाथों का मास जानती होंगी
कभी कभी जब उतरती है झील शाम की छत्त से
थकी थकी सी
ज़रा देर लोनं में रुक कर
सफ़ेद और गुलाबी मसुम्बे के पौधों में घुलने लगती है
की जैसे बर्फ का टुकड़ा पिघलता जाये व्हिस्की में
मैं स्कार्फ उन दिन का गले से उतार देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन पहनके अब भी मैं
तेरी महक में कई रोज़ काट देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन
टंगे है लोनं में अब तक
न वोह पुराने हुए है
न उनका रंग उतारा
कहीं से कोई भी सिवान अभी नहीं उधडी
टंगे है लोनं में अब तक
न वोह पुराने हुए है
न उनका रंग उतारा
कहीं से कोई भी सिवान अभी नहीं उधडी
एलैची के बहुत पास रखे पत्थर पर
ज़रा सी जल्दी सरकाया करती है छाओं
ज़रा सा और घना हो गया है वोह पौधा
मैं थोडा थोडा वोह गमला हटाता रहता हूँ
फकीर अब भी वहीँ मेरी कोफ़ी देता है
गिल्हेरियों को बुलाकर खिलाता हूँ बिस्कुट
गिल्हेरियाँ मुझे शक की नज़र से देखती है
वोह तेरे हाथों का मास जानती होंगी
कभी कभी जब उतरती है झील शाम की छत्त से
थकी थकी सी
ज़रा देर लोनं में रुक कर
सफ़ेद और गुलाबी मसुम्बे के पौधों में घुलने लगती है
की जैसे बर्फ का टुकड़ा पिघलता जाये व्हिस्की में
मैं स्कार्फ उन दिन का गले से उतार देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन पहनके अब भी मैं
तेरी महक में कई रोज़ काट देता हूँ
तेरे उतारे हुए दिन
टंगे है लोनं में अब तक
न वोह पुराने हुए है
न उनका रंग उतारा
कहीं से कोई भी सिवान अभी नहीं उधडी
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